• आज 31 जुलाई है, और आज ही के दिन, शहीद-ए-आज़म सरदार उधम सिंह  ने देश के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए थे। यह दिन हमें उनके अदम्य साहस, असाधारण दृढ़ संकल्प और मातृभूमि के प्रति उनके अटूट प्रेम की याद दिलाता है।
  • उनका जन्म 26 दिसंबर 1899 को पंजाब के संगरूर जिले में हुआ था। बचपन में ही अनाथ हो जाने के बावजूद, उन्होंने कभी हिम्मत नहीं हारी।
  • उनके जीवन का निर्णायक मोड़ 1919 में आया, जब उन्होंने *जलियांवाला बाग नरसंहार* अपनी आँखों से देखा। इस खूनी घटना ने उनके हृदय पर गहरा आघात पहुँचाया और उन्होंने वहीं कसम खाई कि इस क्रूरता का बदला वो ज़रूर लेंगे। यह प्रतिज्ञा एक साधारण व्यक्ति के लिए शायद कल्पनातीत थी, लेकिन उधम सिंह असाधारण थे।
  • लगभग 21 वर्षों तक उन्होंने अपनी प्रतिज्ञा को जीवित रखा। वे दुनिया के कई कोनों में गए, अपनी पहचान बदली, और सही अवसर का इंतज़ार करते रहे। अंततः, 13 मार्च 1940 को, उन्हें लंदन के कैक्सटन हॉल में *माइकल ओ’डायर* मिला, वही व्यक्ति जिसने जलियांवाला बाग में निहत्थे लोगों पर गोली चलाने का आदेश दिया था। उधम सिंह ने ओ’डायर को गोली मारकर अपनी प्रतिज्ञा पूरी की और उस नरसंहार का बदला लिया जिसने लाखों भारतीयों को सदियों तक दर्द दिया था।
  • गिरफ्तारी के बाद उन्होंने अपना नाम ‘राम मोहम्मद सिंह आज़ाद’ बताया, जो भारत की विविध संस्कृति और सर्वधर्म समभाव का प्रतीक था। 31 जुलाई 1940 को, उधम सिंह को फांसी दे दी गई।
  • शहीद उधम सिंह का बलिदान हमें यह सिखाता है कि न्याय के लिए लड़ने की इच्छाशक्ति और मातृभूमि के प्रति समर्पण किसी भी बाधा से बड़ा होता है। उनका जीवन हमें याद दिलाता है कि स्वतंत्रता एक अमूल्य धरोहर है, जिसे अनगिनत बलिदानों से प्राप्त किया गया है।
  • शत-शत नमन।

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